Kalimath Temple Famous Siddhapeeth, where Goddess Kali footprints are present Slide 2-m.khaskhabar.com
×
khaskhabar
Apr 19, 2024 12:11 pm
Location
Advertisement

रुद्रप्रयाग की प्रसिद्ध सिद्धपीठ कालीमठ में मौजूद हैं देवी काली के पैरों के निशान

khaskhabar.com : रविवार, 03 जुलाई 2022 4:18 PM (IST)
रुद्रप्रयाग की प्रसिद्ध सिद्धपीठ कालीमठ में मौजूद हैं देवी काली के पैरों के निशान
कालीमठ मंदिर की मान्यता :

कालीमठ मंदिर के बारे में यह मान्यता है कि सच्चे मन से मांगी गई मनोकामना या मुराद जरूर पूरी होती है। इस मंदिर में एक अखंड ज्योति निरंतर जली रहती है एवं कालीमठ मंदिर पर रक्तशिला, मातंगशिला व चंद्रशिला स्थित हैं। कालीमठ मंदिर में दानवों का वध करने के बाद मां काली मंदिर के स्थान पर अंतध्र्यान हो गई, जिसके बाद से कालीमठ में मां काली की पूजा की जाती है। कालीमठ मंदिर की पुनस्र्थापना शंकराचार्य जी ने की थी।

गांव कालीमठ मूल रूप से और अभी भी गांव 'कवल्था' के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि भारतीय इतिहास के अद्वितीय लेखक कालिदास का साधना स्थल भी यही रहा है। इसी दिव्य स्थान पर कालिदास ने मां काली को प्रसन्न कर विद्वता को प्राप्त किया था। इसके बाद कालीमठ मंदिर में विराजित मां काली के आशीर्वाद से ही उन्होंने अनेक ग्रन्थ लिखे हैं, जिनमें से संस्कृत में लिखा हुआ एकमात्र काव्य ग्रन्थ 'मेघदूत' जो कि विश्वप्रसिद्ध है, 'रुद्रशूल' नामक राजा की ओर से यहां शिलालेख स्थापित किए गए हैं, जो बाह्मी लिपि में लिखे गए हैं। इन शिलालेखों में भी इस मंदिर का पूरा वर्णन है।

शीला से हर साल निकलता है रक्त :

मंदिर के नदी के किनारे स्थित कालीशीला के बारे में यह मान्यता है कि कालीमठ में मां काली ने जिस शीला पर दानव रक्तबीज का वध किया, उस शीला से हर साल दशहरा के दिन वर्तमान समय में भी रक्त यानी खून निकलता है।

यह भी माना जाता है कि मां काली शिम्भ, निशुम्भ और रक्तबीज का वध करने के बाद भी शांत नहीं हुई, तो भगवान शिव मां काली के चरणों के नीचे लेट गए थे, जैसे ही मां काली ने भगवान शिवजी के सीने में पैर रखा, तो मां काली का क्रोध शांत हो गया और वह इस कुंड में अंतध्र्यान हो गई, माना जाता है कि मां काली इस कुंड में समाई हुई है और कालीमठ मंदिर में शिवशक्ति भी स्थापित है।

हर साल नवरात्रि में कालीमठ मंदिर में भक्तों की भीड़ का तांता लगा रहता है और दूर-दूर से श्रद्धालु मां काली का आशीर्वाद लेने के लिए पहुंचते हैं। इस सिद्धपीठ में पूजा अर्चना के लिए श्रद्धालु मां को कच्चा नारियल व देवी के श्रृंगार से जुड़ी सामग्री जिसमें चूड़ी, बिंदी, छोटा दर्पण, कंघी, रिबन, चुनरिया अर्पित करते हैं। देशभर में कालीमठ मंदिर एकमात्र ऐसा स्थान है, जहां पर मां काली, मां सरस्वती और मां लक्ष्मी के अलग अलग मंदिर बने हुए हैं।

ऐसे पहुंचें यहां :


कालीमठ मंदिर तक पहुंचने के लिए सर्वप्रथम रुद्रप्रयाग से गौरीकुंड हाइवे के जरिए 42 किमी का सफर तय कर गुप्तकाशी पहुंचे। उसके बाद गुप्तकाशी से सड़क मार्ग से आठ किलोमीटर का सफर तय कर कालीमठ मंदिर पहुंचा जा सकता है।

--आईएएनएस

ये भी पढ़ें - व्यापार में सफलता के अचूक उपाय

2/2
Advertisement
Khaskhabar.com Facebook Page:
Advertisement
Advertisement