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नंदी के कान में क्यों कहते है अपनी मनोकामना, जानिए क्या है कारण
अक्सर
जब भी हम शिव मंदिरों में जाते हैं, तो हम देखते है कि लोग कुछ लोग नंदी
के कान में कुछ कहते हैं। लेकिन क्या आप जानते है कि आखिर लोग ऐसा क्यों
करते है, आइए जानते है।
इसके पीछे मान्यता है कि भगवान शिव तपस्वी हैं और वे हमेशा समाधि में रहते हैं। ऐसे में उन तक हमारे मन की बात नहीं पहुंच पाती। इस स्थिति में नंदी ही हमारी मनोकामना शिवजी तक पहुंचाते हैं। इसी मान्यता के चलते लोग नंदी को लोग अपनी मनोकामना कहते हैं। ऐसा कहा जाता है कि नंदी भगवान शिव का प्रिय है और भक्तों को विश्वास है कि नंदी ही उनका संदेश शिवाजी तक पहुंचा सकते है। इसके अलावा एक पौराणिक कथा भी है।
पौराणिक कथा के अनुसार, श्रीलाद मुनि ने ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए तप में जीने का फैसला किया था। इससे वंश सामाप्त होता हुआ देख उनके पिता चिंतित हो गए। उन्होंने श्रीलाद को वंश आगे बढ़ाने के लिए कहा। परंतु तप में व्यस्त रहने के कारण श्रीलाद गृहस्थ आश्रम को अपनाना नहीं चाहते थे। इसलिए संतान की कामना के लिए उन्होंने भगवान शिव को तप से प्रसन्न कर जन्म और मृत्यु के बंधन से हीन पुत्र का वरदान मांगा। भगवान शिव श्रीलाद मुनि की कठोर तपस्या से खुश होकर श्रीलाद के पुत्र रूप में प्रकट होने के वरदान दिया। कुछ समय बाद भूमि जोतते वक्त श्रीलाद को एक बालक मिला। जिसका नाम उन्होंने नंदी रखा। अब उसको बड़ा होते देख भगवान शंकर ने मित्र और वरुण नाम के दो मुनि श्रीलाद के आश्रम में भेजे। जिन्होंने नंदी को देखकर भविष्यवाणी की कि नंदी अल्पायु है।
अब जब नंदी को यह मालूम हुआ तो वो महादेव की आराधना से मृत्यु को जीतने के लिए वन में चला गया। वन में उसने शिव का ध्यान आरंभ किया। इसको देख भगवान शिव नंदी के तप से प्रसन्न हुए और वरदान दिया कि वत्स नंदी तुम मृत्यु और भय से मुक्त अजर और अमर है। भगवान शंकर ने उमा की सम्मति से समस्त गणों, गणेश और वेदों के समक्ष गणों के अधिपति के रूप में नंदी का अभिषेक करवाया। इस प्रकार नंदी, नंदेश्वर हो गए। बाद में मरुतों की पुत्री सुयशा के साथ उनका विवाह हुआ।
भगवान शंकर ने नंदी को वरदान दिया कि जहां उनका निवास होगा वहां नंदी भी विराजमान होंगे। कहते हैं कि तभी से हर शिव मंदिर में नंदी की स्थापना की जाती है। साथ ही ऐसा कहा जाता है कि अगर अपनी मनोकामना नंदी के कान में कही जाए तो वे उसे भगवान शिव तक जरूर पहुंचाते हैं।
नंदी के कान में कही बात दूसरा नहीं सुनें...
इसके पीछे मान्यता है कि भगवान शिव तपस्वी हैं और वे हमेशा समाधि में रहते हैं। ऐसे में उन तक हमारे मन की बात नहीं पहुंच पाती। इस स्थिति में नंदी ही हमारी मनोकामना शिवजी तक पहुंचाते हैं। इसी मान्यता के चलते लोग नंदी को लोग अपनी मनोकामना कहते हैं। ऐसा कहा जाता है कि नंदी भगवान शिव का प्रिय है और भक्तों को विश्वास है कि नंदी ही उनका संदेश शिवाजी तक पहुंचा सकते है। इसके अलावा एक पौराणिक कथा भी है।
पौराणिक कथा के अनुसार, श्रीलाद मुनि ने ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए तप में जीने का फैसला किया था। इससे वंश सामाप्त होता हुआ देख उनके पिता चिंतित हो गए। उन्होंने श्रीलाद को वंश आगे बढ़ाने के लिए कहा। परंतु तप में व्यस्त रहने के कारण श्रीलाद गृहस्थ आश्रम को अपनाना नहीं चाहते थे। इसलिए संतान की कामना के लिए उन्होंने भगवान शिव को तप से प्रसन्न कर जन्म और मृत्यु के बंधन से हीन पुत्र का वरदान मांगा। भगवान शिव श्रीलाद मुनि की कठोर तपस्या से खुश होकर श्रीलाद के पुत्र रूप में प्रकट होने के वरदान दिया। कुछ समय बाद भूमि जोतते वक्त श्रीलाद को एक बालक मिला। जिसका नाम उन्होंने नंदी रखा। अब उसको बड़ा होते देख भगवान शंकर ने मित्र और वरुण नाम के दो मुनि श्रीलाद के आश्रम में भेजे। जिन्होंने नंदी को देखकर भविष्यवाणी की कि नंदी अल्पायु है।
अब जब नंदी को यह मालूम हुआ तो वो महादेव की आराधना से मृत्यु को जीतने के लिए वन में चला गया। वन में उसने शिव का ध्यान आरंभ किया। इसको देख भगवान शिव नंदी के तप से प्रसन्न हुए और वरदान दिया कि वत्स नंदी तुम मृत्यु और भय से मुक्त अजर और अमर है। भगवान शंकर ने उमा की सम्मति से समस्त गणों, गणेश और वेदों के समक्ष गणों के अधिपति के रूप में नंदी का अभिषेक करवाया। इस प्रकार नंदी, नंदेश्वर हो गए। बाद में मरुतों की पुत्री सुयशा के साथ उनका विवाह हुआ।
भगवान शंकर ने नंदी को वरदान दिया कि जहां उनका निवास होगा वहां नंदी भी विराजमान होंगे। कहते हैं कि तभी से हर शिव मंदिर में नंदी की स्थापना की जाती है। साथ ही ऐसा कहा जाता है कि अगर अपनी मनोकामना नंदी के कान में कही जाए तो वे उसे भगवान शिव तक जरूर पहुंचाते हैं।
नंदी के कान में कही बात दूसरा नहीं सुनें...
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