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राजा के जमाने से चली आ रही है ये प्रथा, महिलाओं को करना होता है ऐसा...
हर मौसम में निभानी होती है रिवाज...
गर्मी की तपती दोपहर हो, पैर जमा देने वाली कड़ाके की सर्दी या बारिश की कीचड़ से सनी गलियां, इस कुप्रथा को निभाने के लिए आमेठ की महिलाएं गांव के भीतर चप्पलों को हाथ में लेकर नंगे पांव घूमती हैं। हर मौसम में नंगे पांव ही गांव की महिलाओं को काम करना पड़ता है। आदिवासी समाज की इस कुप्रथा में गांव की महिलाओं को बुजुर्गों व बड़ों के मान-सम्मान में घूंघट की ही तरह चप्पलें भी पहनने की इजाजत नहीं है। अब ये कुप्रथा गांव के आस-पास यादव, ब्राह्मण व अन्य समाज की महिलाएं पर भी लागू हो चुकी है। यहां तक कि आंगनबाड़ी और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को भी गांव में घुसने से पहले चप्पलें उतार कर हाथ में लेनी पड़ती हैं। चप्पल पहनकर गांव में प्रवेश करने पर बुजुर्ग एतराज करते हैं। महिला के चप्पल पहने नजर आई महिला को कुलक्षिणी कह कर गांव के बुजुर्ग शिकायत उसके पति से करते हैं। इसके बाद भी कोई महिला इसे नहीं माने तो चौपाल लगाकर फैसला किया जाता है।
राजा बिट्ठल देव के जमाने से चली आ रही प्रथा...
आमेठ गांव को लगभग एक हजार साल पहले राजा बिट्ठल देवल ने बसाया था। इनके राज्य की सीमा में बरगवां, गोरस, पिपराना, कर्राई समेत कराहल क्षेत्र के 30 किमी का इलाका आता था।
राजा बिट्ठल देव के जमाने से ही महिलाओं के चप्पल पहनने पर पाबंदी है। महिला बुजुर्गों के सामने न तो चप्पल पहन सकती थी, और न हीं उनके घरों के आगे से चप्पल पहनकर निकल सकती थी। इसी प्रथा को गांव के आदिवासी समाज ने आज तक जिंदा रखा हुआ है।
गर्मी की तपती दोपहर हो, पैर जमा देने वाली कड़ाके की सर्दी या बारिश की कीचड़ से सनी गलियां, इस कुप्रथा को निभाने के लिए आमेठ की महिलाएं गांव के भीतर चप्पलों को हाथ में लेकर नंगे पांव घूमती हैं। हर मौसम में नंगे पांव ही गांव की महिलाओं को काम करना पड़ता है। आदिवासी समाज की इस कुप्रथा में गांव की महिलाओं को बुजुर्गों व बड़ों के मान-सम्मान में घूंघट की ही तरह चप्पलें भी पहनने की इजाजत नहीं है। अब ये कुप्रथा गांव के आस-पास यादव, ब्राह्मण व अन्य समाज की महिलाएं पर भी लागू हो चुकी है। यहां तक कि आंगनबाड़ी और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को भी गांव में घुसने से पहले चप्पलें उतार कर हाथ में लेनी पड़ती हैं। चप्पल पहनकर गांव में प्रवेश करने पर बुजुर्ग एतराज करते हैं। महिला के चप्पल पहने नजर आई महिला को कुलक्षिणी कह कर गांव के बुजुर्ग शिकायत उसके पति से करते हैं। इसके बाद भी कोई महिला इसे नहीं माने तो चौपाल लगाकर फैसला किया जाता है।
राजा बिट्ठल देव के जमाने से चली आ रही प्रथा...
आमेठ गांव को लगभग एक हजार साल पहले राजा बिट्ठल देवल ने बसाया था। इनके राज्य की सीमा में बरगवां, गोरस, पिपराना, कर्राई समेत कराहल क्षेत्र के 30 किमी का इलाका आता था।
राजा बिट्ठल देव के जमाने से ही महिलाओं के चप्पल पहनने पर पाबंदी है। महिला बुजुर्गों के सामने न तो चप्पल पहन सकती थी, और न हीं उनके घरों के आगे से चप्पल पहनकर निकल सकती थी। इसी प्रथा को गांव के आदिवासी समाज ने आज तक जिंदा रखा हुआ है।
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