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घर से 1500 रुपये लेकर निकले झारखंड के इस शख्स ने सिंगापुर में खोल दिया रेस्तरां का चेन
रांची । एक युवक गांव-गांव घूमकर अखबार बेचता था। इस काम से महीने में बमुश्किल आठ-नौ सौरुपये हासिल होते थे। एक रोज हालात कुछ ऐसे बने कि उसे गांव छोड़ना पड़ा।
घर से निकलते वक्त उसके पिताजी ने उसके हाथ में पंद्रह सौ रुपये दिये। रोजगार की तलाश में चेन्नई पहुंचे 17-18 साल की उम्र वाले इस युवक ने एक रेस्तरां में वेटर की नौकरी पकड़ी। यह छोटी सी नौकरी उसने मेहनत, लगन और ईमानदारी के साथ निभाई तो धीरे-धीरे उसकी तरक्की के रास्ते खुलते गये। वह वेटर से रेस्तरां मैनेजर बना और पहुंच गया सिंगापुर। आज सिंगापुर में उसके खुद के चार रेस्तरां हैं, जहां लगभग ढाई सौ लोग काम करते हैं। वह अब अलग-अलग देशों में 100 रेस्तरां का चेन खोलने की योजना पर काम कर रहा है। संघर्ष और उद्यमिता की यह अद्भुत कहानी कुल पंद्रह साल की है। फिल्मों जैसी इस असली कहानी के नायक हैं चंद्रदेव कुमार शर्मा, जो झारखंड के हजारीबाग जिला अंतर्गत बेहद पिछड़े और नक्सल प्रभावित चुरचू प्रखंड के रहने वाले हैं।
चंद्रदेव ने आईएएनएस से अपनी कहानी साझा की। वह बताते हैं कि घर की कमजोर माली की वजह से उन्होंने 15-16 साल की उम्र से ही गांव-गांव में अखबार बांटने का काम शुरू किया। उनके गांव और आसपास के इलाके में उन दिनों नक्सलियों की अघोषित हुकूमत चलती थी। वह इलाके की खबरें और सूचनाएं हजारीबाग जिला मुख्यालय में एक अखबार के दफ्तर को दिया करते थे। इससे लोग उन्हें ग्रामीण इलाके में रिपोर्टर के तौर पर भी जानने लगे थे। एक बार उनकी एक खबर से नक्सली संगठन का एरिया कमांडर नाराज हो गया। उन्हें धमकियां मिलने लगीं तो घरवाले भयभीत हो गये। इसी वजह से उन्होंने घर छोड़ने का फैसला किया। उनके पास जेब में पिताजी के दिये मात्र पंद्रह सौ रुपये थे। यह वर्ष 2004 की बात है।
घर से निकलते वक्त उसके पिताजी ने उसके हाथ में पंद्रह सौ रुपये दिये। रोजगार की तलाश में चेन्नई पहुंचे 17-18 साल की उम्र वाले इस युवक ने एक रेस्तरां में वेटर की नौकरी पकड़ी। यह छोटी सी नौकरी उसने मेहनत, लगन और ईमानदारी के साथ निभाई तो धीरे-धीरे उसकी तरक्की के रास्ते खुलते गये। वह वेटर से रेस्तरां मैनेजर बना और पहुंच गया सिंगापुर। आज सिंगापुर में उसके खुद के चार रेस्तरां हैं, जहां लगभग ढाई सौ लोग काम करते हैं। वह अब अलग-अलग देशों में 100 रेस्तरां का चेन खोलने की योजना पर काम कर रहा है। संघर्ष और उद्यमिता की यह अद्भुत कहानी कुल पंद्रह साल की है। फिल्मों जैसी इस असली कहानी के नायक हैं चंद्रदेव कुमार शर्मा, जो झारखंड के हजारीबाग जिला अंतर्गत बेहद पिछड़े और नक्सल प्रभावित चुरचू प्रखंड के रहने वाले हैं।
चंद्रदेव ने आईएएनएस से अपनी कहानी साझा की। वह बताते हैं कि घर की कमजोर माली की वजह से उन्होंने 15-16 साल की उम्र से ही गांव-गांव में अखबार बांटने का काम शुरू किया। उनके गांव और आसपास के इलाके में उन दिनों नक्सलियों की अघोषित हुकूमत चलती थी। वह इलाके की खबरें और सूचनाएं हजारीबाग जिला मुख्यालय में एक अखबार के दफ्तर को दिया करते थे। इससे लोग उन्हें ग्रामीण इलाके में रिपोर्टर के तौर पर भी जानने लगे थे। एक बार उनकी एक खबर से नक्सली संगठन का एरिया कमांडर नाराज हो गया। उन्हें धमकियां मिलने लगीं तो घरवाले भयभीत हो गये। इसी वजह से उन्होंने घर छोड़ने का फैसला किया। उनके पास जेब में पिताजी के दिये मात्र पंद्रह सौ रुपये थे। यह वर्ष 2004 की बात है।
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