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मैट्रिक पास टेक्नीशियन ने मात्र 1200 रुपये में बनाया अनूठा डिवाइस, चक्रधरपुर रेलवे जंक्शन की बिजली खपत हुई आधी

रांची । रेलवे के एक टेक्नीशियन ने मात्र 12 सौ रुपये के खर्च में झारखंड के चक्रधरपुर रेलवे जंक्शन पर बिजली की खपत और खर्च में लगभग पचास फीसदी बचत का उपाय ढूंढ़ निकाला है। यह तकनीक रेलवे के आला अफसरों को पसंद आयी है और अब यही सिस्टम चक्रधरपुर रेलवे डिवीजन के टाटानगर और उड़ीसा के राउरकेला जंक्शन पर लागू करने की तैयारी चल रही है।
यह तकनीक इलेक्ट्रॉनिक सर्किट सेंसर पर आधारित है। इसे बनाने वाले मोना बरुआ चक्रधरपुर में तृतीय श्रेणी के टेक्नीशियन के रूप मे काम करते हैं। इलेक्ट्रॉनिक सर्किट सेंसर का काम यह होता है कि जब रेलवे जंक्शन के प्लेटफॉर्म पर ट्रेनें नहीं होती हैं, तब यह 70 फीसदी लाइट और पंखों को स्वत: ऑफ कर देता है। इसी तरह जरूरत के वक्त, यानी ट्रेन जैसे ही प्लेटफॉर्म पर आनेवाली होती है, उसके सिग्नल की लाइट सेंसर पर पड़ती है और इससे प्लेटफॉर्म की सभी लाइटें एक साथ जल उठती हैं। इस स्वचालित सिस्टम का इस्तेमाल यहां पिछले दो महीने से किया जा रहा है।
बताया जाता है कि ऐसे इलेक्ट्रॉनिक सर्किट सेंसर के निर्माण पर डेढ़ से दो लाख तक का खर्च आता है, लेकिन यही सिस्टम रेलवे के तृतीय श्रेणी कर्मी ने 1200 रुपये के खर्च में विकसित कर दिया है।
इस सेंसर को विकसित करने वाले मोना बरुआ मैट्रिक पास हैं और पिछले 23 वर्षों से रेलवे में सेवारत हैं। रेलवे ने उनकी इस तकनीक को न सिर्फ सराहा है, बल्कि उन्हें इसके लिए पुरस्कृत भी किया है।
चक्रधरपुर रेल डिवीजन के डीआरएम वीके साहू का कहना है कि इन दो महीनों पर प्लेटफॉर्म पर बिजली की खपत में लगभग पचास फीसदी की कमी आयी है। बिजली की यह बचत 70 फीसदी तक लायी जायेगी। जल्द ही यही तकनीक दूसरे बड़े प्लेटफॉर्म पर भी लगायी जायेगी।
--आईएएनएस
यह तकनीक इलेक्ट्रॉनिक सर्किट सेंसर पर आधारित है। इसे बनाने वाले मोना बरुआ चक्रधरपुर में तृतीय श्रेणी के टेक्नीशियन के रूप मे काम करते हैं। इलेक्ट्रॉनिक सर्किट सेंसर का काम यह होता है कि जब रेलवे जंक्शन के प्लेटफॉर्म पर ट्रेनें नहीं होती हैं, तब यह 70 फीसदी लाइट और पंखों को स्वत: ऑफ कर देता है। इसी तरह जरूरत के वक्त, यानी ट्रेन जैसे ही प्लेटफॉर्म पर आनेवाली होती है, उसके सिग्नल की लाइट सेंसर पर पड़ती है और इससे प्लेटफॉर्म की सभी लाइटें एक साथ जल उठती हैं। इस स्वचालित सिस्टम का इस्तेमाल यहां पिछले दो महीने से किया जा रहा है।
बताया जाता है कि ऐसे इलेक्ट्रॉनिक सर्किट सेंसर के निर्माण पर डेढ़ से दो लाख तक का खर्च आता है, लेकिन यही सिस्टम रेलवे के तृतीय श्रेणी कर्मी ने 1200 रुपये के खर्च में विकसित कर दिया है।
इस सेंसर को विकसित करने वाले मोना बरुआ मैट्रिक पास हैं और पिछले 23 वर्षों से रेलवे में सेवारत हैं। रेलवे ने उनकी इस तकनीक को न सिर्फ सराहा है, बल्कि उन्हें इसके लिए पुरस्कृत भी किया है।
चक्रधरपुर रेल डिवीजन के डीआरएम वीके साहू का कहना है कि इन दो महीनों पर प्लेटफॉर्म पर बिजली की खपत में लगभग पचास फीसदी की कमी आयी है। बिजली की यह बचत 70 फीसदी तक लायी जायेगी। जल्द ही यही तकनीक दूसरे बड़े प्लेटफॉर्म पर भी लगायी जायेगी।
--आईएएनएस
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