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खतरे में पुरासंपदा, दूर से ही देख सकेंगे चित्तौड़ का 122 फुट ऊंचा विजय स्तंभ
चित्तौड़गढ़। प्रदेश की शान 122 फुट ऊंचे चित्तौड़ किला स्थित विजय स्तंभ के अब खुलने के आसार कम ही हैं। इसकी सीढ़ियाें में दरारें, गढ़्ढे व घिस चुकी हैं, स्तंभ हल्का-सा झुक गया है। राेजाना इस पर डेढ़-दो हजार पर्यटकों की आवाजाही रहती है। इससे स्तंभ पर खतरा मंडरा रहा है।
मंडराते खतरे को देखते हुए पुरातत्व विभाग ने एक जुलाई 2016 को इस पर यह कहते हुए ताला लगाया था कि स्तंभ पर केमिकल वाश किया जाएगा। इस कारण एक साल तक बंद रखा जाएगा। लेकिन अब तक कैमिकल वाश करना तो दूर, काम तक शुरू नहीं हुआ है।
चित्तौड़गढ़ दुर्ग के विकास पर शुक्रवार को हुई बैठक में पुरातत्व विभाग के अफसरों ने खुलासा किया कि स्तंभ को बंद रखने के पीछे सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट है। रिपोर्ट के अनुसार स्तंभ की सीढ़ियों पर रोजाना औसतन डेढ़ हजार पर्यटक चढ़ते व उतरते हैं। इससे सीढ़ियों पर फिसलन हो गई है। प्राचीन पत्थरों में छोटे-छोटे गड्ढे भी हो रहे हैं। दरारें बढ़ने व सीढ़ियों पर फिसलन से विजयस्तंभ को बंद करना जरूरी बताया गया। इसके बाद इस पर ताला लगा दिया गया।
हालांकि सुपरिटेडेंट वीएस वडीकर कहते हैं कि कुछ मंजिलों में सीढियां घिस गई हैं। अभी ये अधिकृत नहीं है कि भविष्य में इसे नहीं खोला जाएगा। इसे बंद रखे जाने का एक कारण केमिकल वाश की प्रक्रिया पूर्ण नहीं होना भी है।
सन 1448 में राणा कुम्भा द्वारा बनवाए गए विजय स्तंभ पर खतरे को लेकर छह साल पहले भी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) अधिकारियों ने चेताया था। उनके सर्वे में कहा गया था कि 9 मंजिला इस स्तंभ की तीसरी से पांचवीं मंजिल तक अंधेरे के अलावा संकरी सीढिय़ां होने से कभी भी कोई हादसा हो सकता है। 157 सीढ़ियों वाले इस स्तंभ की सीढिय़ां घिस चुकी हैं। प्राचीन पत्थरों में छोटे-छोटे गड्ढे भी हो रहे हैं। इसलिए पर्यटकों को या तो दो या तीन मंजिल तक ही जाने की अनुमति दी जाए या फिर इन सीढियों पर लकडी़ का ढांचा लगाकर सुरक्षित किया जाए। हालांकि तब निर्णय नहीं हो पाया था।
मंडराते खतरे को देखते हुए पुरातत्व विभाग ने एक जुलाई 2016 को इस पर यह कहते हुए ताला लगाया था कि स्तंभ पर केमिकल वाश किया जाएगा। इस कारण एक साल तक बंद रखा जाएगा। लेकिन अब तक कैमिकल वाश करना तो दूर, काम तक शुरू नहीं हुआ है।
चित्तौड़गढ़ दुर्ग के विकास पर शुक्रवार को हुई बैठक में पुरातत्व विभाग के अफसरों ने खुलासा किया कि स्तंभ को बंद रखने के पीछे सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट है। रिपोर्ट के अनुसार स्तंभ की सीढ़ियों पर रोजाना औसतन डेढ़ हजार पर्यटक चढ़ते व उतरते हैं। इससे सीढ़ियों पर फिसलन हो गई है। प्राचीन पत्थरों में छोटे-छोटे गड्ढे भी हो रहे हैं। दरारें बढ़ने व सीढ़ियों पर फिसलन से विजयस्तंभ को बंद करना जरूरी बताया गया। इसके बाद इस पर ताला लगा दिया गया।
हालांकि सुपरिटेडेंट वीएस वडीकर कहते हैं कि कुछ मंजिलों में सीढियां घिस गई हैं। अभी ये अधिकृत नहीं है कि भविष्य में इसे नहीं खोला जाएगा। इसे बंद रखे जाने का एक कारण केमिकल वाश की प्रक्रिया पूर्ण नहीं होना भी है।
सन 1448 में राणा कुम्भा द्वारा बनवाए गए विजय स्तंभ पर खतरे को लेकर छह साल पहले भी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) अधिकारियों ने चेताया था। उनके सर्वे में कहा गया था कि 9 मंजिला इस स्तंभ की तीसरी से पांचवीं मंजिल तक अंधेरे के अलावा संकरी सीढिय़ां होने से कभी भी कोई हादसा हो सकता है। 157 सीढ़ियों वाले इस स्तंभ की सीढिय़ां घिस चुकी हैं। प्राचीन पत्थरों में छोटे-छोटे गड्ढे भी हो रहे हैं। इसलिए पर्यटकों को या तो दो या तीन मंजिल तक ही जाने की अनुमति दी जाए या फिर इन सीढियों पर लकडी़ का ढांचा लगाकर सुरक्षित किया जाए। हालांकि तब निर्णय नहीं हो पाया था।
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