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जैसलमेर में पारंपरिक कलाओं के संरक्षण का अनूठा प्रयास

khaskhabar.com : शनिवार, 12 अगस्त 2017 5:12 PM (IST)
जैसलमेर में पारंपरिक कलाओं के संरक्षण का अनूठा प्रयास
जैसलमेर । देश विदेश में राजस्थानी लोक संगीत और लोकवाद्यों के रिदम से श्रोताओं को दीवाना बनाते हुए झूमने को मजबूर करने वाली पारंपरिक लोक कलाओं को बचाये रखने के लिए नए अनूठे प्रयास शुरु किये गए हैं। जैसलमेर में लंगा मांगणियार से जुड़ी गुणसार लोक संगीत संस्थान ने क्लब महेन्द्रा के सहयोग से लंगा मंगणियार जाति के 40 बच्चों के लिए एक वर्कशाॅप शुरु किया हैं। रोजाना चलने वाले महेन्द्रा गुणसार लोक संगीत स्कूल में चल रहे इस प्रशिक्षिण शिविर में लुप्त हो रहे पारंपरिक लोक वाद्यों को बजाने और लोक गीतो को गाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा हैं। इसमें खासकर ऐसे गीत गवाये जा रहे हैं जिनका प्रचलन धीमे-धीमे कम होता जा रहा हैं।
जैसलमेर के लोक संगीत की गूंज सात समंदर पार तक पहुंच चुकी है। हर साल लाखों की संख्या में देशी विदेशी सैलानी पारम्परिक लोक कलाओं को देखने संगीत को सुनने यहाँ आते हैं। जैसलमेर के लोक संगीत को बचा कर रखने वाली जातियां लंगा और मांगनियार इस संगीत को बचा कर रख बैठी है लेकिन आज की पीढ़ियों में इस लोक संगीत का मोह धीरे धीरे ख़त्म हो रहा है। इस संगीत को संरक्षण देने और आने वाली पीढ़ियों में इसे जागृत रखने के लिए जैसलमेर के एक संस्थान गुणसार लोक संगीत संस्थान द्वारा क्लब महेन्द्रा के सहयोग से यह अनूठा प्रयास शुरू किया गया है । जिसमे बच्चों को अपनी लोक कला को सिखाया जा रहा है उन्हें रूबरू करवाया जा रहा है ताकि इस लोक संगीत का संरक्षण हो सके।
असल में जैसलमेर सहित पश्चिमी राजस्थान में कई क्षेत्रो में बजाये जाने वाले लोक वाद्य जिसमें सारंगी, कमायचा, शहनाई आदि प्रमुख हैं का उपयोग धीमे-धीमे काफी कम होता जा रहा हैं। इसके बजाने वाले कलाकार भी काफी गिने चुने रह गए हैं। अब केवल हारमोनियम व ढोलक आदि वाद्ययंत्र कलाकारो द्वारा बजाया जा रहा हैं। इसी तरह कई प्राचीन लोक गीत लुप्त होने के कगार पर हैं। स्थिति यहां तक पहुंच गई हैं कि इनके लिरिक्स भी वर्तमान की नई पीढ़ी को याद नही हैं, इसको देखते हुए लोकगीतो व लोक वाद्यों को बचाने के लिए महेन्द्रा गुड़सार संगीत स्कूल शुरु किया हैं जिसमें लंगा मंगणियार व अन्य जातियों के छोटे-छोटे बच्चों को इन लोकगीतों व वाद्य यंत्रों में पारंगत किया जा रहा हैं।
इसमें फिरोज खान द्वारा मोरचंद व खड़ताल बजाने, रफीक द्वारा ढोलक, खेते खान द्वारा खड़ताल व चंग, सतार खान द्वारा सारंगी, सच्चू खांन द्वारा कमायचा, अमीन खांन द्वारा हारमोनियम, डालूदास द्वारा मंजीड़ा व वीणा, रसूल खांन द्वारा गायन व अली खान द्वारा गायन व बाकी वाद्य यंत्रो को बजाने की ट्रेनिंग दी जा रही हैं।

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