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वर्षों से चुनावी मुद्दा बना है रामकिंकर उपाध्याय सेतु, काम अभी भी अधूरा
मिर्जापुर।
कछवां नगर पंचायत और मझवां ब्लॉक को मिर्जापुर से जोड़ने के लिए बरैनी-भटौली घाट के
बीच गंगा नदी पर रामकिंकर उपाध्याय के नाम से बन रहा पक्का पुल तीन साल के बजाय दस
साल बाद भी पुरा नहीं हो सका है। वर्ष 2007 में पक्का पुल की नींव तत्कालीन
मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने रखी थी। उसी समय पंडित रामकिंकर उपाध्याय सेतु के
नाम से नामकरण भी कर दिया गया था। उस समय उन्होंने गांधी विद्यालय कछवां के मैदान
से तीन साल में पक्का पुल बनकर तैयार हो जाने की घोषणा की थी।
इस बीच दो बार विधान सभा और दो लोक सभा चुनावों में पक्कापुल निर्माण को चुनावी मुद्दा बनाकर चुनाव भी लड़ा गया। लेकिन चुनाव जीतने के बाद जनप्रनिधि जनता की अदालत में किए गये वादे पूरे करने की जहमत नहीं उठा पाए।
विधान सभा चुनाव के दौरान एक बार फिर पुल निर्माण को पूरा कराने का मुद्दा सियासी गलियारों में उठने लगा है। इस बार क्षेत्र की जनता भी ऐसे नेताओं को सबक सिखाने के मूड में है। सेतु निगम के अधिकारियों की मानें तो वर्ष 2007 में जिस समय पक्का पुल का शिलान्यास हुआ था उस समय पुल की कुल लागत 43 करोड़ आंकी गई थी। सेतु निगम के अधिकारी संदीप गुप्ता ने बताया कि यह पुल मार्च 2018 तक तैयार हो जाएगा।
पुल निर्माण की कुल लागत 43 करोड़ से बढ़कर करीब 70 करोड़ की हो गई है। निर्माण कार्य में देरी की वजह से सरकार को पुल निर्माण में 27 करोड़ की क्षति होगी। वर्ष 2012 मे इस पुल को बनाने का काम बंगाल की एक निजी कंपनी सिम्प्लेक्स प्रोजेक्ट लिमिटेड को दिया गया था। लेकिन इसका कार्य अत्यंत धीमा होने के कारण पुन: सेतु निगम को दिया गया। लेकिन तब तक गंगा प्राधिकरण से उत्तर प्रदेश सरकार एनओसी भी नहीं ले पाई थी। वर्ष 2014 में एनओसी लेने की कोशिश हुई। दिसंबर 2014 मे एनओसी मिला और काम तेजी से शुरू हो सका। 2016-17 तक पक्का पुल तैयार हो जाने की उम्मीद थी लेकिन अभी भी अधूरा है।
राजनीति की बलि चढ़ता रहा पक्कापुल
वर्ष 2007-2012 के मध्य बहुजन समाज पार्टी की सरकार थी। इस सरकार ने तो पुल के प्रगति के बारे में कुछ सोचा ही नहीं और न ही एनओसी के लिए पैरवी की। इस प्रकार यह बरैनी भटौली के मध्य बन रहा पक्कापुल राजनीति की बलि चढ़ता रहा। लोगों का कहना है कि इस पुल को अब पंडित श्यामधर मिश्रा व पंडित लोकपति त्रिपाठी जैसे नेताओं का इंतजार है।
इस बीच दो बार विधान सभा और दो लोक सभा चुनावों में पक्कापुल निर्माण को चुनावी मुद्दा बनाकर चुनाव भी लड़ा गया। लेकिन चुनाव जीतने के बाद जनप्रनिधि जनता की अदालत में किए गये वादे पूरे करने की जहमत नहीं उठा पाए।
विधान सभा चुनाव के दौरान एक बार फिर पुल निर्माण को पूरा कराने का मुद्दा सियासी गलियारों में उठने लगा है। इस बार क्षेत्र की जनता भी ऐसे नेताओं को सबक सिखाने के मूड में है। सेतु निगम के अधिकारियों की मानें तो वर्ष 2007 में जिस समय पक्का पुल का शिलान्यास हुआ था उस समय पुल की कुल लागत 43 करोड़ आंकी गई थी। सेतु निगम के अधिकारी संदीप गुप्ता ने बताया कि यह पुल मार्च 2018 तक तैयार हो जाएगा।
पुल निर्माण की कुल लागत 43 करोड़ से बढ़कर करीब 70 करोड़ की हो गई है। निर्माण कार्य में देरी की वजह से सरकार को पुल निर्माण में 27 करोड़ की क्षति होगी। वर्ष 2012 मे इस पुल को बनाने का काम बंगाल की एक निजी कंपनी सिम्प्लेक्स प्रोजेक्ट लिमिटेड को दिया गया था। लेकिन इसका कार्य अत्यंत धीमा होने के कारण पुन: सेतु निगम को दिया गया। लेकिन तब तक गंगा प्राधिकरण से उत्तर प्रदेश सरकार एनओसी भी नहीं ले पाई थी। वर्ष 2014 में एनओसी लेने की कोशिश हुई। दिसंबर 2014 मे एनओसी मिला और काम तेजी से शुरू हो सका। 2016-17 तक पक्का पुल तैयार हो जाने की उम्मीद थी लेकिन अभी भी अधूरा है।
राजनीति की बलि चढ़ता रहा पक्कापुल
वर्ष 2007-2012 के मध्य बहुजन समाज पार्टी की सरकार थी। इस सरकार ने तो पुल के प्रगति के बारे में कुछ सोचा ही नहीं और न ही एनओसी के लिए पैरवी की। इस प्रकार यह बरैनी भटौली के मध्य बन रहा पक्कापुल राजनीति की बलि चढ़ता रहा। लोगों का कहना है कि इस पुल को अब पंडित श्यामधर मिश्रा व पंडित लोकपति त्रिपाठी जैसे नेताओं का इंतजार है।
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