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बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय में आयोजित कवि सम्मेलन देर रात तक कवियों ने बांधा समा

khaskhabar.com : रविवार, 12 नवम्बर 2017 5:31 PM (IST)
बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय में आयोजित कवि सम्मेलन देर रात तक कवियों ने बांधा समा
झाँसी। दीक्षान्त समारोह के अवसर पर बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग द्वारा अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसमें देश के प्रतिष्ठित कवियों ने अपनी कविताओं से श्रोताओं को देर रात तक बांधे रखा। गीतों के राजकुमार प्रोफेसर सोम ठाकुर की अध्यक्षता में आयोजित इस कवि सम्मेलन में काव्य के विविध रसों के साधक कवियों ने अपनी प्रतिनिधि रचनाओं का पाठ किया। ओज के क्षेत्र में देश विदेश में विख्यात डॉ. हरिओम पवार ने अपनी रचना में कहा मैं भी गीत सुना सकता हूं शबनम के अभिनन्दन के, मैं भी ताज पहन सकता हूं चन्दन वन के नंदन के, लेकिन जब तक पगडंडी से संसद तक कोलाहल है, तब तक केवल गीत लिखूंगा जन मन के कृंदन के।


रवीन्द्र शुक्ल ‘रवि ने अपने दोहों के माध्यम से वात्सल्य की धारा प्रवाहित करते हुए कहा मां ममता की पालना, डोर पिता की तात, दोनों के कारणमिली, जीवन की सौगात, श्लेष गौतम ने महारानी लक्ष्मीबाई को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए कहा-हार नहीं मानी लक्ष्मीबाई ने था बलिदान किया, मान दिया पूरी दुनिया में भारत को सम्मान दिया, आहुति दी हंसते-हंसते देश को स्वाभिमान दिया, आजादी की नींव रखी और हमको हिन्दुस्तान दिया। कवयित्री रश्मि शाक्य ने अपना बयान कुछ यूं किया जमाने भर के दीवाने सभी दिलबर नहीं होते, समन्दर की जो गहराई से मैं घबरा गयी होती, तो जो गौहर मेरे पास वो गौहर नहीं होती। कवि सम्मेलन का संचालन कर रहे हरिनारायण हरीश ने कहा जब-जब कोई कर्ण बहाया जाएगा, द्रौपदियों को नग्न कराया जाएगा, जब-जब दुर्योधन जैसे शासक होंगे, यहां महाभारत दोहराया जाएगा। सिद्धार्थ राय ने कहा- बावला हो गया जग मैं समझा, तुम न समझे क्यों साथी, प्रीत का दीप तुम्हें समझकर, बन गया मैं उसकी थाती। प्रगति शर्मा बया ने अपनी अभिव्यक्ति में कहा- कामयाबी कभी मिलती न किसी सूरत में, बैठ के घर में जो हाथों को मला करते हैं।

रंजना राय ने सुनाया- आओ हम तुम दोनों मिलकर जीवन का एक गीत लिखें, अलग-अलग राहों के राही कैसे बनते मीत लिखें। डॉ. विनम्र सेन सिंह ने श्रृंगार रस का सागर उड़ेलते हुए कहा- आइना देखकर सब संवरने लगे, अपने चेहरे में अब रंग भरने लगे, कैैसा है रूप उनका असल में कि वो, अपनी खुद की हकीकत से डरने लगे। कवि सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहे सोम ठाकुर ने अपने मधुर गीत में कहा-सागर चरन पखारे गंगा शीष चढ़ाता नीर, मेरे भारत की माटी है चंदन और अबीर, सौ-सौ नमा करूं मैं मैं सौ-सौ नमन करूं। कवि सम्मेलन में उपस्थित कवियों ने बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय को उत्तर प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय में शामिल होने पर बधाई देते हुए उनका अभिनंदन किया। कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ के कार्यकारी अध्यक्ष प्रो. सदानंदप्रसाद गुप्त, श्रीमती आषा दुबे, डॉ. नीति शास्त्री, कुलसचिव सी.पी. तिवारी, प्रो. आर. के. सैनी, प्रो. सुनील काबिया, प्रो. एस.के. कटियार, डॉ. डी.के भट्ट, डॉ. सौरभ श्रीवास्तव, डॉ. मुन्ना तिवारी, डॉ. पुनीत बिसारिया, डॉ. अचला पाण्डेय, डॉ. श्रीहरि त्रिपाठी, नवीन चंद पटेल, डॉ. यशोधरा शर्मा, डॉ. संतोष पाण्डेय, डॉ. ललित गुप्ता, इंजी. राहुल शुक्ला, डॉ. वी.बी. त्रिपाठी, डॉ. श्वेता पाण्डेय, डॉ. संतोष पाण्डेय, श्रवण कुमार द्विवेदी, रतन सिंह सहित छात्र-छात्राओं देर रात तक कवियों की रचानाओं का आनन्द लिया।

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