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अगर फिल्म इंडस्ट्री से सेंसर हटा दिया जाएगा तो इंडियन कल्चर का...
जयपुर। स्वयंसेवी संस्था आंजनेय सेवा समिति की ओर से होटल ग्रांड उनियारा में आयोजित दो दिवसीय उत्सव ‘बियॉन्ड द स्टेट्स-फेस्टिवल ऑफ डेमोक्रेसी’ का रविवार को समापन हुआ। इस दौरान राजनीति, प्रशासन और सिनेमा से जुड़ी हस्तियों ने परस्पर संवाद कर लोकतांत्रित विचारों से उपस्थितजनों को अवगत कराया। आंजनेय सेवा समिति के अध्यक्ष भवानी सिंह शेखावत, सचिव बिनय अग्रवाल, उपाध्यक्ष संजय तनेजा तथा संयोजक विकास पोद्दार ने अतिथियों का स्वागत किया।
फेस्टिवल ऑफ डेमोक्रेसी के दौरान भारतीय सिनेमा में आजादी की स्थिति पर आधारित समापन सत्र ‘अभिव्यक्ति-हाउ लिबरेटेड इज इंडियन सिनेमा इन करंट सिनेरियो’ में ‘गदर-एक प्रेम कथा’ फेम बॉलीवुड फिल्म निर्देशक अनिल शर्मा, फिल्म प्रोड्यूसर के.सी. बोकाडिया एवं कमल मुकुट और वरिष्ठ पत्रकार संजीव श्रीवास्तव ने लोकतंत्र की मजबूती में सिनेमा की भूमिका पर चर्चा की।
निर्माता के.सी. बोकाडिया ने कहा कि अगर फिल्म इंडस्ट्री से सेंसर हटा दिया जाएगा तो इंडियन कल्चर का रेप ही हो जाएगा। कुछ बड़े प्रोड्यूसर्स ने किस सीन से शुरुआत की तो अन्य फिल्मकार नंगाई पर ही उतर आए। आज अच्छी फिल्में अवेलेबल नहीं हैं। निर्देशक अनिल शर्मा ने कहा कि अमेरिका और यूके जैसे देशों के लोकतंत्र में अभिव्यक्ति का तरीका अलग है। वहां सेंसर बोर्ड फिल्म सर्टिफिकेशन का काम करता है, जबकि भारत में सेंसर की सिर्फ फिल्म पर कैंची ही चलती है। आज डिजिटल वर्ल्ड में दर्शक भारतीय नागरिक की भांति स्वतंत्र हो गया है। जब अपने मोबाइल पर सभी प्रकार का कंटेट देखा जा रहा है तो ऐसे में सेंसर बोर्ड का पब्लिक पर असर कहीं नजर ही नहीं जा रहा है। फिल्म प्रोड्यूसर कमल मुकुट ने कहा कि फिल्मों में तड़का लगाने के बावजूद सरकार हमारी थाली में मसाला नहीं परोस रही है। फिल्मकारों के समक्ष कई समस्याएं हैं, जिन्हें सिंगल विंडो बनाकर दूर किया जा सकता है।
बियॉन्ड द स्टेट्स फेस्टिवल ऑफ डेमोक्रेसी के दूसरे दिन की परिचर्चाओं का आगाज ‘मतदान - हाउ रिस्पॉन्सिबल वोटर्स वी आर?’ से हुआ। लोकतंत्र में मतदान और मतदाता की भूमिका पर आधारित इस सत्र में दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य मंत्री सत्येन्द्र जैन, प्रो. जगदीप छोकर और केन्द्रीय वित्त राज्यमंत्री अर्जुन राम मेघवाल के बीच संवाद हुआ। दूसरे सत्र ‘2047-आर वी रेडी टू सेलिब्रेट सेन्चुरी’ में प्रो. संजय कुमार, राज्य वित्त आयोग की अध्यक्ष ज्योतिकिरण शुक्ला, प्रशासनिक अधिकारी जगरूप यादव और वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी के बीच संवाद हुआ, जिसमें उन्होंने आजादी के 100 साल पूरे होने के अवसर पर भारत के लोकतंत्र की भविष्य की तस्वीर प्रस्तुत की।
दूसरे दिन दिखा दोगुना उत्साह
बियॉन्ड द स्टेट्स – फेस्टिवल ऑफ डेमोक्रेसी 2018 के दूसरे दिन दोगुना उत्साह दिखाई दिया। दिनभर में तीन महत्वपूर्ण सत्रों के माध्यम से संवाद और चर्चाएं रखी गईं। सत्रों में वक्ताओं ने विषय पर आधारित अपना पक्ष सजगता से रखा, वहीं दर्शकों की ओर से भी जोशपूर्ण प्रश्न किए गए। प्रश्नों से ही किसी संवाद की सार्थकता होती है और बियॉन्ड द स्टेट्स – फेस्टिवल ऑफ डेमोक्रेसी 2018 में दर्शकों की सक्रिय भागीदारी ने इसे सफल किया।
लोकतंत्र एक ऐसा शब्द है, जिसमें वे समस्त पक्ष समाहित होते हैं, जो समूचे राष्ट्र को आगे बढ़ाने में सहायक हों। आज, जिस आजादी से हम लाभान्वित हैं, जो अधिकार हमें प्राप्त हैं, वह सब इसीलिए सम्भव हो सका है, चूंकि हम विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के नागरिक हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए, इस लोकतंत्र के उत्सव का आयोजन किया गया है। इस उत्सव के जरिए राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण पक्षों – राजनीति, साहित्य, कला, शिक्षा, स्वास्थ्य, खेल, सिनेमा और अन्य पक्षों से जुड़े अहम् विषयों पर संवाद किया गया। इस मंच के माध्यम से राजनेताओं, नीति निर्धारकों, समाजशास्त्रियों, अभिनेताओं, खिलाड़ियों, कलाकारों और अन्य महत्वपूर्ण हस्तियों के साथ, गणराज्य भारत के लोकतन्त्र के विविध आयामों पर चर्चा की गई। कार्यक्रम के जरिए लोकतंत्र के प्रारम्भ से वर्तमान समय तक की यात्रा के साथ ही भविष्य की कार्ययोजनाओं पर भी विस्तृत चर्चा रखी गई। नीति – निर्माताओं के साथ लोकतंत्र को मजबूत बनाने की दिशा में उठाए जा सकने वाले सकारात्मक कदमों पर भी बात हुई।
पहला सत्र : हम कितने जिम्मेदार वोटर हैं?
फेस्टिवल ऑफ डेमोक्रेसी के दौरान भारतीय सिनेमा में आजादी की स्थिति पर आधारित समापन सत्र ‘अभिव्यक्ति-हाउ लिबरेटेड इज इंडियन सिनेमा इन करंट सिनेरियो’ में ‘गदर-एक प्रेम कथा’ फेम बॉलीवुड फिल्म निर्देशक अनिल शर्मा, फिल्म प्रोड्यूसर के.सी. बोकाडिया एवं कमल मुकुट और वरिष्ठ पत्रकार संजीव श्रीवास्तव ने लोकतंत्र की मजबूती में सिनेमा की भूमिका पर चर्चा की।
निर्माता के.सी. बोकाडिया ने कहा कि अगर फिल्म इंडस्ट्री से सेंसर हटा दिया जाएगा तो इंडियन कल्चर का रेप ही हो जाएगा। कुछ बड़े प्रोड्यूसर्स ने किस सीन से शुरुआत की तो अन्य फिल्मकार नंगाई पर ही उतर आए। आज अच्छी फिल्में अवेलेबल नहीं हैं। निर्देशक अनिल शर्मा ने कहा कि अमेरिका और यूके जैसे देशों के लोकतंत्र में अभिव्यक्ति का तरीका अलग है। वहां सेंसर बोर्ड फिल्म सर्टिफिकेशन का काम करता है, जबकि भारत में सेंसर की सिर्फ फिल्म पर कैंची ही चलती है। आज डिजिटल वर्ल्ड में दर्शक भारतीय नागरिक की भांति स्वतंत्र हो गया है। जब अपने मोबाइल पर सभी प्रकार का कंटेट देखा जा रहा है तो ऐसे में सेंसर बोर्ड का पब्लिक पर असर कहीं नजर ही नहीं जा रहा है। फिल्म प्रोड्यूसर कमल मुकुट ने कहा कि फिल्मों में तड़का लगाने के बावजूद सरकार हमारी थाली में मसाला नहीं परोस रही है। फिल्मकारों के समक्ष कई समस्याएं हैं, जिन्हें सिंगल विंडो बनाकर दूर किया जा सकता है।
बियॉन्ड द स्टेट्स फेस्टिवल ऑफ डेमोक्रेसी के दूसरे दिन की परिचर्चाओं का आगाज ‘मतदान - हाउ रिस्पॉन्सिबल वोटर्स वी आर?’ से हुआ। लोकतंत्र में मतदान और मतदाता की भूमिका पर आधारित इस सत्र में दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य मंत्री सत्येन्द्र जैन, प्रो. जगदीप छोकर और केन्द्रीय वित्त राज्यमंत्री अर्जुन राम मेघवाल के बीच संवाद हुआ। दूसरे सत्र ‘2047-आर वी रेडी टू सेलिब्रेट सेन्चुरी’ में प्रो. संजय कुमार, राज्य वित्त आयोग की अध्यक्ष ज्योतिकिरण शुक्ला, प्रशासनिक अधिकारी जगरूप यादव और वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी के बीच संवाद हुआ, जिसमें उन्होंने आजादी के 100 साल पूरे होने के अवसर पर भारत के लोकतंत्र की भविष्य की तस्वीर प्रस्तुत की।
दूसरे दिन दिखा दोगुना उत्साह
बियॉन्ड द स्टेट्स – फेस्टिवल ऑफ डेमोक्रेसी 2018 के दूसरे दिन दोगुना उत्साह दिखाई दिया। दिनभर में तीन महत्वपूर्ण सत्रों के माध्यम से संवाद और चर्चाएं रखी गईं। सत्रों में वक्ताओं ने विषय पर आधारित अपना पक्ष सजगता से रखा, वहीं दर्शकों की ओर से भी जोशपूर्ण प्रश्न किए गए। प्रश्नों से ही किसी संवाद की सार्थकता होती है और बियॉन्ड द स्टेट्स – फेस्टिवल ऑफ डेमोक्रेसी 2018 में दर्शकों की सक्रिय भागीदारी ने इसे सफल किया।
लोकतंत्र एक ऐसा शब्द है, जिसमें वे समस्त पक्ष समाहित होते हैं, जो समूचे राष्ट्र को आगे बढ़ाने में सहायक हों। आज, जिस आजादी से हम लाभान्वित हैं, जो अधिकार हमें प्राप्त हैं, वह सब इसीलिए सम्भव हो सका है, चूंकि हम विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के नागरिक हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए, इस लोकतंत्र के उत्सव का आयोजन किया गया है। इस उत्सव के जरिए राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण पक्षों – राजनीति, साहित्य, कला, शिक्षा, स्वास्थ्य, खेल, सिनेमा और अन्य पक्षों से जुड़े अहम् विषयों पर संवाद किया गया। इस मंच के माध्यम से राजनेताओं, नीति निर्धारकों, समाजशास्त्रियों, अभिनेताओं, खिलाड़ियों, कलाकारों और अन्य महत्वपूर्ण हस्तियों के साथ, गणराज्य भारत के लोकतन्त्र के विविध आयामों पर चर्चा की गई। कार्यक्रम के जरिए लोकतंत्र के प्रारम्भ से वर्तमान समय तक की यात्रा के साथ ही भविष्य की कार्ययोजनाओं पर भी विस्तृत चर्चा रखी गई। नीति – निर्माताओं के साथ लोकतंत्र को मजबूत बनाने की दिशा में उठाए जा सकने वाले सकारात्मक कदमों पर भी बात हुई।
पहला सत्र : हम कितने जिम्मेदार वोटर हैं?
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