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यहां महिलाओं ने पुरुषों पर बरसाए लट्ठ
प्रतापगढ़। करीब दो सौ साल पहले रियासत कालीन दौर में रियासत प्रतापगढ़ के राजपरिवार में होली पर किसी की मौत होने के बाद शोक मनाया जाता है। धूलंडी को होली नहीं खेली जाती। शोक के बाद 13वें दिन रंग तेरस पर्व मनाया जाता है। रंग तेरस पर्व पर धमोत्तर के निकटवर्ती टांडा गांव में बुधवार को लट्ठमार होली खेली गई। यह आयोजन सदियों से चलता आ रहा है।
लवसेना मीडिया प्रभारी दशरथ लबाना ने बताया कि लट्ठमार होली टांडा गांव के नायक गौतम लबाना के खेत पर खेली गई। लट्ठमार होली में महिलाओं ने पुरुषों पर लट्ठ बरसाए। पुरुषों ने सहजता के साथ लट्ठ की मार सहन करते हुए बचाव किया। लट्ठमार होली से पहले गांव के बीच में शाम ढलने से पूर्व विधि विधानपूर्वक पूजा, अर्चना के साथ लोगों ने ललेनो नृत्य नगाड़ों की थपथपाहाट से शुरू किया। उसके बाद में गौतम नायक के खेत पर ललेनो नृत्य के साथ लट्ठमार होली खेली गई। नेजा लूटने के दौरान पुरुषों को घेर-घेर कर लाठियां बरसाई गईं। जबकि पुरुष अपनी लाठियों के दम पर महिलाओं की लाठियों से बचने का जतन करते रहे। लबाना बाहुल्य गांवों में लट्ठमार होली के मद्देनजर आसपास के कई गांवों के समाजजन यहां भागीदारी करने पहुंचे।
महिलाओं को सम्मान देने का पर्व
धुलण्डी पर प्रतापगढ़ में मनाया जाता है शोक
लवसेना मीडिया प्रभारी दशरथ लबाना ने बताया कि लट्ठमार होली टांडा गांव के नायक गौतम लबाना के खेत पर खेली गई। लट्ठमार होली में महिलाओं ने पुरुषों पर लट्ठ बरसाए। पुरुषों ने सहजता के साथ लट्ठ की मार सहन करते हुए बचाव किया। लट्ठमार होली से पहले गांव के बीच में शाम ढलने से पूर्व विधि विधानपूर्वक पूजा, अर्चना के साथ लोगों ने ललेनो नृत्य नगाड़ों की थपथपाहाट से शुरू किया। उसके बाद में गौतम नायक के खेत पर ललेनो नृत्य के साथ लट्ठमार होली खेली गई। नेजा लूटने के दौरान पुरुषों को घेर-घेर कर लाठियां बरसाई गईं। जबकि पुरुष अपनी लाठियों के दम पर महिलाओं की लाठियों से बचने का जतन करते रहे। लबाना बाहुल्य गांवों में लट्ठमार होली के मद्देनजर आसपास के कई गांवों के समाजजन यहां भागीदारी करने पहुंचे।
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