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विवेकानंद के जयंती पर युवाओं से सीधा संवाद करेंगे मुख्यमंत्री मनोहरलाल
पंचकूला। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल शुक्रवार को सुबह 11.30 बजे राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, सेक्टर 1 में स्वामी विवेकानंद के जयंती के अवसर पर आयोजित युवा दिवस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि होंगे और युवाओं से सीधा संवाद करेंगे।
इस संबंध में जानकारी देते हुए हरियाणा हाउसिंग बोर्ड के चेयरमैन जवाहर यादव ने बताया कि इस कार्यक्रम को आयोजित करने का मुख्य उद्येश्य यह है कि युवा राष्ट्र का भविष्य हैं, इसलिए उनसे सीधा संवाद करके सुझाव लिए जाएं कि सरकार उनके कल्याण के लिए इस दिशा में और बेहतर क्या कर सकती है। उन्होंने बताया इस कार्यक्रम में इंजिनियरिंग, खेल, ग्रेजुएशन, बीडीएस,बी कॉम व अन्य क्षेत्रों में पढा़ई करने वाले युवा भाग लेंगे।
उन्होंने बताया कि स्वामी विवेकानंद की जयंती को युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है और मुख्यमंत्री ने इस दिन को युवाओं से संवाद के लिए चुना है। उन्होंने बताया कि यह एक गैरराजनीतिक कार्यक्रम है और इस कार्यक्रम का युवाओं के लिए ही आयोजित किया गया है। उन्होंने बताया कि इससे पहले भी मुख्यमंत्री कुरुक्षेत्र में आयोजित कनैक्ट टू सीएम कार्यक्रम के तहत युवाओं से रू-ब-रू हो चुके हैं।
यादव ने बताया कि स्वामी विवेकानन्द का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में हुआ था। इनका बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ था। इनके पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाईकोर्ट के एक प्रसिद्ध वकील थे। उनके पिता पाश्चात्य सभ्यता में विश्वास रखते थे। वे अपने पुत्र नरेन्द्र को भी अंग्रेजी पढ़ाकर पाश्चात्य सभ्यता के ढर्रे पर चलाना चाहते थे। इनकी माता भुवनेश्वरी देवीजी धार्मिक विचारों की महिला थीं।
उन्होंने स्वामी विवेकानंद के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उन्होंने अमेरिका स्थित शिकागो में सन् 1893 में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। भारत का वेदान्त अमेरिका और यूरोप के हर एक देश में स्वामी विवेकानन्द के कारण ही पहुँचा। उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी जो आज भी अपना काम कर रहा है। वे रामकृष्ण परमहंस के सुयोग्य शिष्य थे। उन्हें प्रमुख रूप से उनके भाषण की शुरुआत मेरे अमेरिकी भाइयों एवं बहनों के साथ करने के लिए जाना जाता है। उनके संबोधन के इस प्रथम वाक्य ने सबका दिल जीत लिया था।
स्वामी विवेकानन्द अपना जीवन अपने गुरुदेव श्रीरामकृष्ण को समर्पित कर चुके थे। गुरुदेव के शरीर-त्याग के दिनों में अपने घर और कुटुम्ब की नाजुक हालत की चिंता किये बिना, स्वयं के भोजन की चिंता किये बिना, वे गुरु-सेवा में सतत संलग्न रहे। गुरुदेव का शरीर अत्यन्त रुग्ण हो गया था। विवेकानंद ने एक नये समाज की कल्पना की थी। ऐसा समाज जिसमें धर्म या जाति के आधार पर मनुष्य-मनुष्य में कोई भेद नहीं रहे। उन्होंने वेदांत के सिद्धांतों को इसी रूप में रखा। अध्यात्मवाद बनाम भौतिकवाद के विवाद में पड़े बिना भी यह कहा जा सकता है कि समता के सिद्धांत की जो आधार विवेकानन्द ने दिया, उससे सबल बौद्धिक आधार शायद ही ढूंढा जा सके। उन्होंने कहा कि विवेकानन्द को युवकों से बड़ी आशाएं थीं।
इस संबंध में जानकारी देते हुए हरियाणा हाउसिंग बोर्ड के चेयरमैन जवाहर यादव ने बताया कि इस कार्यक्रम को आयोजित करने का मुख्य उद्येश्य यह है कि युवा राष्ट्र का भविष्य हैं, इसलिए उनसे सीधा संवाद करके सुझाव लिए जाएं कि सरकार उनके कल्याण के लिए इस दिशा में और बेहतर क्या कर सकती है। उन्होंने बताया इस कार्यक्रम में इंजिनियरिंग, खेल, ग्रेजुएशन, बीडीएस,बी कॉम व अन्य क्षेत्रों में पढा़ई करने वाले युवा भाग लेंगे।
उन्होंने बताया कि स्वामी विवेकानंद की जयंती को युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है और मुख्यमंत्री ने इस दिन को युवाओं से संवाद के लिए चुना है। उन्होंने बताया कि यह एक गैरराजनीतिक कार्यक्रम है और इस कार्यक्रम का युवाओं के लिए ही आयोजित किया गया है। उन्होंने बताया कि इससे पहले भी मुख्यमंत्री कुरुक्षेत्र में आयोजित कनैक्ट टू सीएम कार्यक्रम के तहत युवाओं से रू-ब-रू हो चुके हैं।
यादव ने बताया कि स्वामी विवेकानन्द का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में हुआ था। इनका बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ था। इनके पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाईकोर्ट के एक प्रसिद्ध वकील थे। उनके पिता पाश्चात्य सभ्यता में विश्वास रखते थे। वे अपने पुत्र नरेन्द्र को भी अंग्रेजी पढ़ाकर पाश्चात्य सभ्यता के ढर्रे पर चलाना चाहते थे। इनकी माता भुवनेश्वरी देवीजी धार्मिक विचारों की महिला थीं।
उन्होंने स्वामी विवेकानंद के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उन्होंने अमेरिका स्थित शिकागो में सन् 1893 में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। भारत का वेदान्त अमेरिका और यूरोप के हर एक देश में स्वामी विवेकानन्द के कारण ही पहुँचा। उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी जो आज भी अपना काम कर रहा है। वे रामकृष्ण परमहंस के सुयोग्य शिष्य थे। उन्हें प्रमुख रूप से उनके भाषण की शुरुआत मेरे अमेरिकी भाइयों एवं बहनों के साथ करने के लिए जाना जाता है। उनके संबोधन के इस प्रथम वाक्य ने सबका दिल जीत लिया था।
स्वामी विवेकानन्द अपना जीवन अपने गुरुदेव श्रीरामकृष्ण को समर्पित कर चुके थे। गुरुदेव के शरीर-त्याग के दिनों में अपने घर और कुटुम्ब की नाजुक हालत की चिंता किये बिना, स्वयं के भोजन की चिंता किये बिना, वे गुरु-सेवा में सतत संलग्न रहे। गुरुदेव का शरीर अत्यन्त रुग्ण हो गया था। विवेकानंद ने एक नये समाज की कल्पना की थी। ऐसा समाज जिसमें धर्म या जाति के आधार पर मनुष्य-मनुष्य में कोई भेद नहीं रहे। उन्होंने वेदांत के सिद्धांतों को इसी रूप में रखा। अध्यात्मवाद बनाम भौतिकवाद के विवाद में पड़े बिना भी यह कहा जा सकता है कि समता के सिद्धांत की जो आधार विवेकानन्द ने दिया, उससे सबल बौद्धिक आधार शायद ही ढूंढा जा सके। उन्होंने कहा कि विवेकानन्द को युवकों से बड़ी आशाएं थीं।
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