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शाहजहाँपुर के अंश और आशी ने जीता कांस्य पदक
राजीव शर्मा,शाहजहांपुर।शाहजहाँपुर के अंश और आशी ने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कांस्य पदक
जीतकर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। दोनों ने पंजाब में हुए इण्टरनेशनल
ताईक्वाईन्डो प्रतियोगिता में भारत के लिए खेलते हुए कांस्य पदक जीता है।
चौंकाने वाली बात है आशी की उम्र अभी 18 वर्ष है जबकि अंश की उम्र अभी 12 वर्ष ही है। 26 नबम्बर को हुई इस जीत से जश्न का माहौल पूरे शहर में दिखाई
पड़ रहा है वहीं घर पर बधाई देने वालों का तांता लगा हुआ है।
ताईक्वाइन्डों प्रतियोगिता में जो हुनर दिखाया उसमें दुश्मन खिलाड़ियों के छ्क्के छूट गए। 20 नबम्बर से पंजाब के अमृतसर में हुई इस प्रतियोगिता में अंश और आशी ने कांस्य पदक जीतकर अपने हुनर का लोहा मनवा दिया। महज 18 और 12 वर्ष की उम्र में बांग्लादेश,इण्डोनेशिया,श्रीलंका और नेपाल जैसे देशों के खिलाड़ियों को धूल चटाने वाले आशी और अंश देश के लिये गोल्ड लाना चाह रहे है लेकिन उनके सपनों मे पंख लगाने को यह लोग सरकार से सुविधाएं मांग रहे है।
आशी शाहजहांपुर के छोटे से कस्बे तिलहर की रहने वाली है और अंश शाहजहाँपुर के सिटी पार्क में रहते है। तिलहर जैसे छोटे से कस्बे में न तो खेल की सुविधाएं है और न ही पढाई के अच्छे साधन। इन दोनों के ताईक्वान्डो गुरू मोहित सिन्हा ने जब इनके हुनर को निखारा तो दोनों के हुनर मे पंख लग गये। उनके गुरु को भी यह एहसास नहीं था कि उनके शिष्य यह मुकाम हासिल कर लेंगे। उनकी इस उपलब्धि से घर वाले फूले नहीं समा रहे है।
ताईक्वाइन्डों प्रतियोगिता में जो हुनर दिखाया उसमें दुश्मन खिलाड़ियों के छ्क्के छूट गए। 20 नबम्बर से पंजाब के अमृतसर में हुई इस प्रतियोगिता में अंश और आशी ने कांस्य पदक जीतकर अपने हुनर का लोहा मनवा दिया। महज 18 और 12 वर्ष की उम्र में बांग्लादेश,इण्डोनेशिया,श्रीलंका और नेपाल जैसे देशों के खिलाड़ियों को धूल चटाने वाले आशी और अंश देश के लिये गोल्ड लाना चाह रहे है लेकिन उनके सपनों मे पंख लगाने को यह लोग सरकार से सुविधाएं मांग रहे है।
आशी शाहजहांपुर के छोटे से कस्बे तिलहर की रहने वाली है और अंश शाहजहाँपुर के सिटी पार्क में रहते है। तिलहर जैसे छोटे से कस्बे में न तो खेल की सुविधाएं है और न ही पढाई के अच्छे साधन। इन दोनों के ताईक्वान्डो गुरू मोहित सिन्हा ने जब इनके हुनर को निखारा तो दोनों के हुनर मे पंख लग गये। उनके गुरु को भी यह एहसास नहीं था कि उनके शिष्य यह मुकाम हासिल कर लेंगे। उनकी इस उपलब्धि से घर वाले फूले नहीं समा रहे है।
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