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शर्मसार यूपी, बेटी का शव गोद में लेकर घूमते रहे परिजन
अमरीष मनीष शुक्ला , इलाहाबाद। इलाहाबाद मण्डल के कौशांबी जिले में बेटी का शव मामा लेकर गया
था। लगा था अब शासन प्रशासन नींद से जागेगा और व्यवस्था में सुधार होगा। लेकिन उस घटना से किसी के कान में जूं तक नहीं रेंगी। जिसके फलस्वरूप एक और
घटना हुई है। इस बार इलाहाबाद में घटना हुई है और एक बार फिर व्यवस्था पर
सवाल उठे हैं।
यहां के स्वरूप रानी नेहरू अस्पताल में बेटी की मौत के बाद पिता उसकी लाश लेकर भटकता रहा। पत्नी अस्पताल में ही भर्ती रही। पैसे नहीं थे कि वह किसी वाहन से घर चला जाता। मोबाइल में बैलेंस भी नहीं था कि किसी को खबर कर सकता था। मजबूरी में डाक्टर, अस्पताल और फिर एंबुलेंस से चालक से मदद की गुहार करता रहा। एंबुलेंस चालक ने कहा कि हम मरीज को ले आ सकते हैं। पहुंचने का आर्डर नहीं।
मजबूर पिता के पैसे नहीं थे तो तपती धूप में पैदल ही घर चल पड़ा । लेकिन 8 किलोमीटर पैदल चलने के बाद जब सांसे उखड़ने लगी तो बीच रास्ते ही उसने वह फैसला लिया जो मानवता को शर्मसार कर रहा था। पत्नी के पास वापस लौटने और घर न पहुंचने के बीच उसने फैसला कि अब वह बेटी का शव संगम में ही दफन कर देगा। बिलख बिलख कर रोते हुये बेटी को रेती में दफन कर वापस अस्पताल लौट आया। आईसीयू में भर्ती पत्नी को तो यह तक नहीं पता है कि उसकी कोख उजड़ चुकी है।
पिता ने बताया दर्द
इलाहाबाद जिला मुख्यालय से 80 किलोमीटर दूर खीरी इलाका पड़ता है। यहां के कल्याणपुर में रहने वाले आदिवासी किसान सूबेलाल की पत्नी रन्नो गर्भवती थी। प्रसव पीड़ा हुई तो सूबेलाल रन्नों को खीरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ले गया।
सूबेलाल ने बताया कि अस्पताल में डॉक्टर नहीं थे, वार्ड ब्वाय ने कोई बात नहीं सुनी। यहां से 30 किलोमीटर दूर कोरांव स्वास्थ्य केंद्र पहुंछा। लेकिन अफसोस यहां भी धरती के भगवान नहीं मिले। जब सूबेलाल की उम्मीद टूटने लगी और दर्द से पत्नी कि हालत बिगड़ी तो एक निजी अस्पताल पहुंचा। लेकिन बिगड़ती रन्नो की हालत ने उसे परेशान कर दिया।
सूबेलाल ने बताया कि टेंपो वाले से मिन्नत कर किराया तय किया और जिला अस्पताल बेली पहुंचा। यहां डाक्टरों ने डफरिन जाने को कहा। जब डफरिन अस्पताल पहुंचा तो एसआरएन अस्पताल भेज दिया गया।
रात भर भटकता रहा
इस अस्पताल से उस अस्पताल सूबेलाल दौड़ता रहा। जो पैसे थे वह खर्च होते रहे। इस प्रक्रिया में रात के एक बज चुके थे और रन्नों जिंदगी मौत के बीच फंसी थी। यहां एसआरएन अस्पताल में इलाज शुरू हुआ तो पता चला रन्नो की कोख में पल रहा बच्चा दम तोड़ चुका है। सुबह ऑपरेशन से मृत बच्ची बाहर निकाली गई । रन्नो बेहोशी हालत में आईसीयू में भर्ती है। उसे यह भी नहीं पता कि उसकी कोख उजड़ चुकी है। सूबेलाल मृत नवजात को लेकर घंटों रोता रहा। फिर डाक्टरों से घर जाने की व्यवस्था करने को कहा। अस्पताल अधिकारियों के पास गया। एंबुलेंस चालक से मिला पर एंबुलेंस नहीं मिली । सूबेलाल ने मिन्नत की उसके पास पैसे नहीं है। वह बच्चे को दफना भी नहीं सकता। लेकिन किसी को इस लाचार पिता पर तरस नहीं आया। अपनी खाली जेब और गरीबी को कोसते, रोते बिलखते सूबे लाल पैदल ही चिलचिलाती धूप में घर चल पड़ा। लगभग 8 आठ किलोमीटर तक वह चलता रहा। रास्ते भर आते जाते वाहनों से मदद मांगता रहा। लेकिन किसी का कलेजा नहीं पसीजा। जब उसकी सांसे उखड़ी तो संगम के निकट गंगा घाट पर उसने बेटी को जल में प्रवाहित कर दिया।
यहां के स्वरूप रानी नेहरू अस्पताल में बेटी की मौत के बाद पिता उसकी लाश लेकर भटकता रहा। पत्नी अस्पताल में ही भर्ती रही। पैसे नहीं थे कि वह किसी वाहन से घर चला जाता। मोबाइल में बैलेंस भी नहीं था कि किसी को खबर कर सकता था। मजबूरी में डाक्टर, अस्पताल और फिर एंबुलेंस से चालक से मदद की गुहार करता रहा। एंबुलेंस चालक ने कहा कि हम मरीज को ले आ सकते हैं। पहुंचने का आर्डर नहीं।
मजबूर पिता के पैसे नहीं थे तो तपती धूप में पैदल ही घर चल पड़ा । लेकिन 8 किलोमीटर पैदल चलने के बाद जब सांसे उखड़ने लगी तो बीच रास्ते ही उसने वह फैसला लिया जो मानवता को शर्मसार कर रहा था। पत्नी के पास वापस लौटने और घर न पहुंचने के बीच उसने फैसला कि अब वह बेटी का शव संगम में ही दफन कर देगा। बिलख बिलख कर रोते हुये बेटी को रेती में दफन कर वापस अस्पताल लौट आया। आईसीयू में भर्ती पत्नी को तो यह तक नहीं पता है कि उसकी कोख उजड़ चुकी है।
पिता ने बताया दर्द
इलाहाबाद जिला मुख्यालय से 80 किलोमीटर दूर खीरी इलाका पड़ता है। यहां के कल्याणपुर में रहने वाले आदिवासी किसान सूबेलाल की पत्नी रन्नो गर्भवती थी। प्रसव पीड़ा हुई तो सूबेलाल रन्नों को खीरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ले गया।
सूबेलाल ने बताया कि अस्पताल में डॉक्टर नहीं थे, वार्ड ब्वाय ने कोई बात नहीं सुनी। यहां से 30 किलोमीटर दूर कोरांव स्वास्थ्य केंद्र पहुंछा। लेकिन अफसोस यहां भी धरती के भगवान नहीं मिले। जब सूबेलाल की उम्मीद टूटने लगी और दर्द से पत्नी कि हालत बिगड़ी तो एक निजी अस्पताल पहुंचा। लेकिन बिगड़ती रन्नो की हालत ने उसे परेशान कर दिया।
सूबेलाल ने बताया कि टेंपो वाले से मिन्नत कर किराया तय किया और जिला अस्पताल बेली पहुंचा। यहां डाक्टरों ने डफरिन जाने को कहा। जब डफरिन अस्पताल पहुंचा तो एसआरएन अस्पताल भेज दिया गया।
रात भर भटकता रहा
इस अस्पताल से उस अस्पताल सूबेलाल दौड़ता रहा। जो पैसे थे वह खर्च होते रहे। इस प्रक्रिया में रात के एक बज चुके थे और रन्नों जिंदगी मौत के बीच फंसी थी। यहां एसआरएन अस्पताल में इलाज शुरू हुआ तो पता चला रन्नो की कोख में पल रहा बच्चा दम तोड़ चुका है। सुबह ऑपरेशन से मृत बच्ची बाहर निकाली गई । रन्नो बेहोशी हालत में आईसीयू में भर्ती है। उसे यह भी नहीं पता कि उसकी कोख उजड़ चुकी है। सूबेलाल मृत नवजात को लेकर घंटों रोता रहा। फिर डाक्टरों से घर जाने की व्यवस्था करने को कहा। अस्पताल अधिकारियों के पास गया। एंबुलेंस चालक से मिला पर एंबुलेंस नहीं मिली । सूबेलाल ने मिन्नत की उसके पास पैसे नहीं है। वह बच्चे को दफना भी नहीं सकता। लेकिन किसी को इस लाचार पिता पर तरस नहीं आया। अपनी खाली जेब और गरीबी को कोसते, रोते बिलखते सूबे लाल पैदल ही चिलचिलाती धूप में घर चल पड़ा। लगभग 8 आठ किलोमीटर तक वह चलता रहा। रास्ते भर आते जाते वाहनों से मदद मांगता रहा। लेकिन किसी का कलेजा नहीं पसीजा। जब उसकी सांसे उखड़ी तो संगम के निकट गंगा घाट पर उसने बेटी को जल में प्रवाहित कर दिया।
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