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भोपाल गैस त्रासदी : दिसंबर आते ही सिहर उठते हैं प्रभावित
भोपाल। हमीदा बी (55) को दिसंबर का महीना आते ही घबराहट होने लगती है, उनके चेहरे पर उड़ी हवाइयां साफ नजर आ जाती हैं। उनकी जुबान तक लडख़ड़ा जाती है। ऐसा होना लाजिमी भी है, क्योंकि भोपाल में यूनियन कार्बाइड संयंत्र से रिसी जहरीली गैस मिथाइल आइसो सायनाइड (मिक) के असर ने उनके 40 से ज्यादा नाते-रिश्तेदारों को छीन लिया है।
हमीदा आज भी तीन दिसंबर की सुबह नहीं भूली हैं, उनकी आंखों में तब आंसू भर आते हैं, जब उन्हें याद आता है कि उन्होंने हमीदिया अस्पताल में एक कपड़े को हटाने की कोशिश की, जब उसे खोलकर देखा तो उसमें उनकी छह माह की नातिन (नवासी) का शव लिपटा हुआ था।
हमीदा को जैसे ही दो-तीन दिसंबर की रात याद आती है, उनका गुस्सा यूनियन कार्बाइड और देश की सरकारों पर फूट पड़ता हैं और उस समय का मंजर उनकी आंखों के सामने नाचने लगता है।
उनका कहना है कि ‘‘रात 12 बजे फिल्म का शो छूटा होगा, तभी ऐसा लगा कि किसी ने मिर्ची जलाई है। आंखों में जलन होने लगी, खांसी आई, किसी तरह सभी ने रजाई आदि ओढ़ कर रात निकाली। सुबह उठकर देखा तो हर तरफ मकानों के दरवाजे खुले थे और कोई नजर नहीं आ रहा था।’’ वह आगे बताती है कि उन्हें शौहर इस शर्त पर घर से बाहर लोगों को ढूंढऩे ले गए कि बुर्का नहीं हटाओगी।
हमीदा आज भी तीन दिसंबर की सुबह नहीं भूली हैं, उनकी आंखों में तब आंसू भर आते हैं, जब उन्हें याद आता है कि उन्होंने हमीदिया अस्पताल में एक कपड़े को हटाने की कोशिश की, जब उसे खोलकर देखा तो उसमें उनकी छह माह की नातिन (नवासी) का शव लिपटा हुआ था।
हमीदा को जैसे ही दो-तीन दिसंबर की रात याद आती है, उनका गुस्सा यूनियन कार्बाइड और देश की सरकारों पर फूट पड़ता हैं और उस समय का मंजर उनकी आंखों के सामने नाचने लगता है।
उनका कहना है कि ‘‘रात 12 बजे फिल्म का शो छूटा होगा, तभी ऐसा लगा कि किसी ने मिर्ची जलाई है। आंखों में जलन होने लगी, खांसी आई, किसी तरह सभी ने रजाई आदि ओढ़ कर रात निकाली। सुबह उठकर देखा तो हर तरफ मकानों के दरवाजे खुले थे और कोई नजर नहीं आ रहा था।’’ वह आगे बताती है कि उन्हें शौहर इस शर्त पर घर से बाहर लोगों को ढूंढऩे ले गए कि बुर्का नहीं हटाओगी।
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