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सनातनधर्मियों का सैलाब देख छलक उठीं गुरूजी की आंखें
बारां। श्रीमद् भागवत ज्ञान यज्ञ महोत्सव एवं गौरक्षा सम्मेलन में शनिवार को सनातनधर्मियों का सैलाब 50 हजार का आंकड़ा पार गया, जिसे देखकर सरस्वती पुत्र गौसेवक संत कमलकिशोर नागर की आंखें छलक उठीं। पांडाल का विहंगम दृश्य देखकर संतश्री ने तत्क्षण मुख्य यजमान भाया से कहा कि तू धन्य है, जिसके मनोरथ से कथा का आयोजन हो सका। यह सब ईश्वर का कृपा आशीर्वाद है। वह जिसके हाथों से भोग चाहता है, असल में माध्यम वही बनता है।
गुरूजी ने आज फिर गाय, कन्या एवं पौथी से प्रसंग प्रारंभ करते हुए दोहराया कि प्रमोद भाया दंपती की तरह सभी संपन्न व्यक्तियों को गाय, कन्या एवं पौथी यानी कथा की ओर ध्यान लगाना चाहिए। यदि आपका मन, आसन साधना, उपासना माला एवं दीपक नहीं बढ़ता है तो समझो आपका ईष्ट कमजोर हो रहा है, जैसे दीपक को जलाए रखकर हम उसे बढ़ते हुए देखना चाहते हैं, ठीक उसी प्रकार ईष्ट को प्रबल करने के लिए परमात्मा के साथ गोपी-भाव में जुड़ जाने की आवश्यकता है। यह गोपी-भाव भक्ति से उत्पन्न होता है। भक्ति को पाने के लिए श्रद्धा को बढ़ाना होता है और श्रद्धा का जन्म तब होगा, जब संदेह खत्म होगा। तुम अगर कथामृतपान के लिए इस पांडाल में बैठकर भी व्यासपीठ से नहीं जुड़ पा रहे हो तो समझो कि अभी तुम्हारे मनोभाव में ‘संदेह’ बना हुआ है। जब तक संदेह बना रहेगा तब तक तुम कथा का रसास्वादन नहीं कर सकते।
गुरूजी ने आज फिर गाय, कन्या एवं पौथी से प्रसंग प्रारंभ करते हुए दोहराया कि प्रमोद भाया दंपती की तरह सभी संपन्न व्यक्तियों को गाय, कन्या एवं पौथी यानी कथा की ओर ध्यान लगाना चाहिए। यदि आपका मन, आसन साधना, उपासना माला एवं दीपक नहीं बढ़ता है तो समझो आपका ईष्ट कमजोर हो रहा है, जैसे दीपक को जलाए रखकर हम उसे बढ़ते हुए देखना चाहते हैं, ठीक उसी प्रकार ईष्ट को प्रबल करने के लिए परमात्मा के साथ गोपी-भाव में जुड़ जाने की आवश्यकता है। यह गोपी-भाव भक्ति से उत्पन्न होता है। भक्ति को पाने के लिए श्रद्धा को बढ़ाना होता है और श्रद्धा का जन्म तब होगा, जब संदेह खत्म होगा। तुम अगर कथामृतपान के लिए इस पांडाल में बैठकर भी व्यासपीठ से नहीं जुड़ पा रहे हो तो समझो कि अभी तुम्हारे मनोभाव में ‘संदेह’ बना हुआ है। जब तक संदेह बना रहेगा तब तक तुम कथा का रसास्वादन नहीं कर सकते।
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